सरयू जल के रूप में बह्म है और इसमें स्नान करने वाले जीव श्रीराम के स्वरूप बन जाते हैं। इन पौराणिक मान्यताओं के आधार पर पावन सलिला सरयू में हर साल करीब 5 करोड़ भक्त स्नान कर रहे हैं।लेकिन सरयू की धारा घाटों से दूर होती जा रही है।इससे संतों और श्रद्धालुओं को अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। सरयू तीर्थ पुरोहित समिति ने अध्यक्ष रहे ओमप्रकाश पांडेय खुद घाटों पर 50 साल से बैठ रहे हैं।वे रोज सुबह से लेकर शाम तक सरयू के पुराने पुल के पास अपने घाट पर खुद पूजा करते हुए दिखते हैं।उनका सरयू का प्रेम बेहद गहरा है। पांडेय कहते हैं कि हमें सरयू ने सब कुछ दिया।यहां एक दिन न आओ तो लगता है कि जीवन व्यर्थ है।रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद के तो स्नानघाटों सहित समूची अयोध्या की भव्यता निखर गई है। वे कहते हैं कि अब भक्तों की राह नहीं देखनी पड़ती है।अब तो पूरे दिन उनकी भीड़ ही रहती है।यह सब देखकर बहुत ही आनंद ही प्राप्ति हो रही है। ओमप्रकाश पांडेय यह भी कहते हैं कि सरयू की शोभा उसके घाटों पर निरंतर जल बने रहने से ही है।सरकार समूचे घाटों का सुंदरीकरण कर रही है।इसका काम चल रहा है।उसे दिशा में भी गंभीरता से सोचना चाहिए।सियाराम किला झुनकीघाट के महंत करुणा निधान शरण कहते हैं कि गर्मियों में झुनकी घाट के सामने तो एक किलोमीटर दूर तक नदी की धारा पहुंच जाती है।बचपन से घाट को जल से समृद्ध देखा तो अब दुख हो रहा है।यही हाल संत तुलसी दास घाट का भी देखा जा सकता है।