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जान देंगे, जमीन नहीं… सौगंध खाते हैं:बगैर सूचना जमाबंदी रद्द करने से भड़के सैकड़ों किसान, निकाला मार्च

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बरौनी प्रखंड के मल्हीपुर मौजा की 700 एकड़ जमीन को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में डेवलप करने के लिए जमाबंदी रद्द करने तथा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के गांव सिमरिया, कसहा आदि के करीब 800 एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री पर रोक लगाने से किसान अब सड़क पर उतर आए हैं। सैकड़ों किसानों ने आज चकिया दुर्गा स्थान से अपने जमीन तक शांतिपूर्ण आक्रोश मार्च निकाला। इस दौरान किसानों ने कहा कि हम लोग विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन सरकार जबरदस्ती जमीन लेने का कोशिश करेगी तो जान दे देंगे, जमीन नहीं देंगे। हम सौगंध इस मिट्टी की खाते हैं, मिट जाएंगे, लेकिन अपने पुस्तैनी जमीन को जबरदस्ती कब्जा में करने की सरकारी कोशिश को हर हाल में नाकाम कर देंगे। बोले- जिला प्रशासन ने 700 एकड़ जमीन की जमाबंदी रद्द की आक्रोश मार्च में शामिल बीहट नगर परिषद के उप मुख्य पार्षद ऋषिकेश कुमार, किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष रोहित कुमार, किसान मुकेश कुमार राय, अरविंद कुमार सिंह एवं रामाशीष सिंह सहित अन्य लोगों ने कहा कि जिला प्रशासन द्वारा औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए एक साथ करीब 700 एकड़ जमीन की जमाबंदी रद्द कर दी गई। जिला प्रशासन द्वारा सिमरिया गंगा घाट के आसपास औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए मल्हीपुर मौजा के थाना नंबर-503, खाता 261 तथा खेसरा 890 एवं 891 को गैर मजरुआ खास भूमि घोषित करते हुए 700 एकड़ भूमि चिन्हित कर सैकड़ों किसानों की जमाबंदी एक साथ रद्द कर दी गई। बरौनी प्रखंड के चकिया, मल्हीपुर, विष्णुपुर, बीहट, कसहा एवं बरियाही सहित आसपास के गांव के सैकड़ों किसान जो 1920-30 के दशक से ही उक्त जमीन पर खेती-बाड़ी करते आ रहे हैं। उनकी जमीन के खरीद-बिक्री पर रोक लगा दिया गया है। हमारे बाप-दादा इस उपजाऊ भूमि से खेती-बाड़ी कर अपना घर परिवार चलाते आ रहें हैं। इन प्रोजेक्ट्स के लिए कराया गया है जमीन का अधिग्रहण इस इलाके में सिक्स लेन फुल, एनटीपीसी, बरौनी थर्मल, सिक्स लेन पुल निर्माण और औद्योगिक क्षेत्र के लिए जमीन का अधिग्रहण कराया है और सरकार के द्वारा मुआवजा भी दिया गया‌। लेकिन इस बार किसानों को अधिग्रहण के बाद मुआवजा ना देना पड़े, इसलिए एक साथ 700 एकड़ से ज्यादा जमीन की जमाबंदी रद्द कर दी गई। करीब 800 की खरीद-बिक्री पर रोक लगाई गई। हालांकि जिला प्रशासन की ओर से 2 दिसंबर तक किसानों को नोटिस देकर एडीएम कार्यालय में आपत्ति दर्ज करने का समय दिया गया। लेकिन आपत्ति दर्ज करने से पहले ही सभी जमाबंदी को रद्द कर दिया गया। औद्योगिक विकास के लिए हम किसान जमीन देने को तैयार हैं और हर बार जमीन दिया भी है। जिला प्रशासन और बिहार सरकार ने मनमाने तरीके से किसानों की जमीन हड़पने के लिए जमाबंदी रद्द कर दी। किसान मर जाएंगे, मिट जाएंगे, लेकिन इस जमीन का अधिग्रहण सरकार को करने नहीं देंगे। सरकार को औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए जमीन अधिग्रहण करना है तो सरकारी नियम के तहत आए और किसानों से बात करे, मुआवजा दे, उसके बाद जमीन का अधिग्रहण करे। जबरन अधिग्रहण करने की कोशिश करेगी तो किस मरने मिटने के लिए तैयार हैं, रद्द जमाबंदी को वापस किया जाए।

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