“सरकार हम बहन के एक आवास, शौचालय और पीने के पानी की व्यवस्था कर दे तो हम लोग भी धरती पर रह जाते… बरसात में हम बहनों को बड़ी दिक्कत होती है। घर के बाहर रास्ते पर पानी भर जाता है। छत भी टपकती है। शौचालय में दरवाजों की जगह पर्दे हैं जो हवा से उड़ जाते.. बड़ी शर्म आती है लेकिन मजबूर हैं..” ये कहना है 100% पैरों से दिव्यांग सीमा (30) का जो कुशीनगर जिले में दुदही ब्लाक के कोकिलपट्टी गांव में अपनी तरह अपनी दो दिव्यांग बहनों मीना (35), रिंकू (28) के साथ रहती हैं। जिस घर में तीन बेटियां दिव्यांग हैं ऐसे परिवार के लिए भी सरकार के पास कोई योजना नहीं है। तीनों बहनों को विकलांगता पेंशन और पांच साल पहले एक शौचालय मिला था। जबकि पिता द्वारा बनाया गया 34 साल पहले एक कमरे का मकान जो कि जर्जर हो चूका है। बरसात में छत टपकती है। सरकार द्वारा 5 साल पहले सड़क किनारे बना शौचालय भी जर्जर है। उसमें दरवाजे तक नहीं है। उसमें पर्दे लगाकर बेटियां अपने तन को छुपा नित्यकर्म करती हैं। 10 लोगों के परिवार के राशनकार्ड में 6 यूनिट चढ़ा ही नहीं है इसलिए जो राशन सरकार से मिलता वह 10 दिन भी नहीं चल पाता.. अधिकारियों से लेकर विधायक तक से परिवार गुहार लगा चुका है लेकिन आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं मिला। परिवार में कुल 10 लोग थे। जिनमें 6 बहनें बड़ी हैं दो छोटे भाई और मां बाप है। उनमें से सबसे बड़ी बहन माधुरी की शादी पिता ने पहले ही कर दी थी। लेकिन 16 साल पहले 2008 में इस परिवार पर तब दुखों का पहाड़ टूटा जब कुछ दिनों के अंदर एक के बाद एक तीन बेटियों मीना, सीमा और रिंकू अपने पैरों से विकलांग होती गईं। तीनों के पैर 100 फीसदी दिव्यांगता में आ गये। किसी तरह एक मंद बुद्धि लडके से मीना की शादी 2010 में करा तो दी गयी लेकिन ससुराल वाले उसे भी पिता के घर वापस छोड़ गए। तीनों बेटियों के इलाज के लिए पिता ने 2014 में लगातार 6 माह जिला अस्प्ताल में भर्ती रहे लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। इधर सबसे बड़े दामाद की किडनी फेल होने से उसकी मौत हो गयी। अब उसके भी परिवार की जिम्मेदारी पिता पर ही है। वर्ष 1980 में नारायणी नदी के अंदर अमवा खास गांव विलीन हो गया। उसी समय सरकार ने दुदही ब्लॉक में 356 बाढ़ विस्थापितों को कोकिल पट्टी गांव में बसाया। इनकी खेती और मूल घर नदी की बाढ़ में समा गए। जिसके करण अब ये भूमिहीन भी है। उसी में एक परिवार विकलांग बेटियों का भी है। घर में तीन जवान बेटियों के पिता राम प्रताप(60) गुप्ता पहले किसी दूसरे प्रदेश में रिक्शा चलाते थे। उसी कमाई से 1990 में एक कमरा एक गैलरी और टीन शेड का घर बनाया। लेकिन 2018 में घुटनों और पैर के दर्द की वजह से घर पर ही हैं। अब उन्होंने एक ठेला खरीदा है ताकि चौराहे पर लगा परिवार को पाल सकें। मां मुन्नी देवी (55) घर पर कुछ मवेशी रख देखभाल करती हैं। दो और बहनें है जो अपने विकलांग बहनों की देखभाल करती है। परिवार की परेशानियों को देख बड़ा बेटा गोविन्द महज 14 साल की उम्र में दिहाड़ी मजदूरी कर रहा है। सबसे छोटा बेटा प्राथमिक विद्यालय में पढ़ रहा। इस परिवार को ना तो यूनिट के अनुसार पूरा राशन मिल पा रहा.. न जॉब कार्ड बना है। जब परिवार ने टपकती छत का हवाला देकर आवास मांगा तो पक्की छत होने की रिपोर्ट लगा जिम्मेदारों ने उन्हें लाभ से वंचित कर दिया। जिस पर दिव्यांग रिंकू (28) ने कहा की “हमारी शादी तो होगी नहीं, जो बहन हम लोगों की देखभाल कर रही वो भी एक दिन चली जाएंगी… मां-पिताजी की मौत के बाद हम लोगों का क्या होगा। भाइयों की शादी हो गयी तो यह घर भी उनका हो जायेगा। सरकार हम लाचार बेटियों को एक घर दे जिसमें शौचालय और पीने के पानी की व्यवस्था हो। हम भीख मांग कर भी आगे की जिंदगी जी लेंगे। लेकिन साहब लोग कहते हैं बेटियों को सुविधा देने का कोई प्राविधान नहीं है।” हमने कोकिल पट्टी गांव के प्रधान नुरुल होदा से परिवार को मूलभूत सुविधाओं जैसे सड़क, नाली, शुद्ध पेयजल, शौचालय, आवास जैसे सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के बारे में जानने का प्रयास किया। उन्होंने सरकार को ही दोषी बता दिया। प्रधान ने कहा- मेरे ग्राम सभा के खाते में विकास कार्यों के लिए पैसा ही नही है। मैं जो विकास कार्य पहले ही करा चूका हूं वो भी पेमेंट नहीं हुआ। वह परिवार शिकायत करता है लेकिन मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा। वे चाहे तो हमारी मुहर लेकर कहीं लगा दें। सरकार हमें विकास के लिए कुछ नहीं दे रही। ग्राम प्रधान के बयान और पीड़ित परिवार की समस्या में आ रही दिक्कतों को जानने के लिए हमने बीडिओ दुदही रामराज कुशवाहा से बात की तो उन्होंने प्रधान के बयान को गैर-जिम्मेदाराना बताया। बीडीओ ने कहा- सरकार के नियम में ही एडवांस काम कराने का प्राविधान नहीं है। जितना काम उतना पेमेंट होता है। ग्राम सभाओ में विकास के लिए फंड की कमी नहीं है। मैं दिखता हूं अखिर उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया। रही बात दिव्यांग बच्चियों के परिवार के सुविधाओं की तो जो भी संभव होगा कराया जायेगा। मैं खुद उनके घर जाकर उनकी दिक्कतें देख चुका हूं।