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महामना के जन्मोत्सव पर BHU में रूद्राभिषेक का हुआ आयोजन:मालवीय भवन में सांस्कृतिक कार्यक्रम का हुआ आयोजन,महाकुंभ के थीम पर होगा पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन

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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की जयंती हिन्दी तिथि के अनुसार आज पौष कृष्ण अष्टमी को विश्वविद्यालय परिसर स्थित श्री विश्वनाथ मंदिर में रुद्राभिषेक आयोजित किया गया। इस अवसर पर रेक्टर प्रो. संजय कुमार, छात्र अधिष्ठाता प्रो. ए.के. नेमा समेत अन्य लोग मौजूद थे। सभी ने विश्वविद्यालय परिवार के कल्याण की कामना की। रुद्राभिषेक के आचार्यत्व की जिम्मेदारी प्रो. विनय कुमार पाण्डेय, मानित व्यवस्थापक, श्री विश्वनाथ मन्दिर ने निभाई। इस कार्यक्रम में पुरोहितों ने विधिपूर्वक रुद्राभिषेक सम्पन्न कराया। महाकुंभ के थीम पर पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन मालवीय जयंती समारोह के उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय में देवादिपूजन, श्रीमदभागवत पारायण समेत विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। मालवीय जयंती समारोह के तहत 25 दिसंबर को मालवीय स्मृति पुष्प प्रदर्शनी महाकुंभ और बाबा विश्वनाथ धाम के थीम पर आयोजित की जाएगी। सेवाज्ञ संस्थानम् काशी महानगर द्वारा महामना महोत्सव महामना मदन मोहन मालवीय जी की जन्मतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित वार्षिक महोत्सव सेवाज्ञ संस्थानम् किया जायेगा। आयोजन ने बताया जो राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार का माध्यम है। महामना महोत्सव के अंतर्गत 50 से अधिक विद्यालयों के 3500 से अधिक छात्रों के बीच 7 प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा, जिसमें भाषण प्रतियोगिता,निबंध लेखन,चित्रकला, गीतपाठ, दौड़,विज्ञान प्रदर्शनी और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं का उद्देश्य छात्रों में सृजनात्मकता, ज्ञान और सांस्कृतिक जागरूकता को प्रोत्साहित करना है। आइए अब जानते हैं कैसा रहा महामना का जीवन प्रोफेसर प्रवीण राणा ने बताया – महामना मालवीय जी को पांच वर्ष की आयु में उनके माता-पिता ने संस्कृत भाषा में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंडित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती करा दिया। यहां से प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्‍हें प्रयाग की विद्यावर्धिनी सभा द्वारा संचालित स्‍कूल में भेजा गया। मकरन्द की मिली उपाधि प्रोफेसर राणा ने बताया – इसके बाद वे इलाहाबाद के जिला स्कूल पढ़ने गये। यहीं उन्होंने मकरन्द के उपनाम से कविताएं लिखनी प्रारम्भ की, लो कई पत्र-पत्रिकाओं में छपती और लोगों को खूब पसंद आती। इसके बाद, 1879 में उन्होंने म्योर सेन्ट्रल कॉलेज से, जो अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। यहां से हैरिसन स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेजा, जहां से उन्होंने 1884 ई० में बी.ए. की डिग्री हासिल की। पढ़ाई पूरी होने के बाद पहले उन्होंने शिक्षक की नौकरी की। इसके बाद वकालत की। साथ ही वो एक न्यूज पेपर के एडिटर भी रहे। 1915 में उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना की।

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