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लखनऊ के गली-कूचा महोत्सव में चांदी की जूती का क्रेज:हैदराबादी ज्वेलरी, कजाकिस्तान-तुर्की के कपड़े भी पहली पसंद; लोग बोले- बस अदब सीखा

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वो आबोहवा वो सुकून कहीं और नहीं मिलता…। मिलते हैं बहुत शहर मगर लखनऊ सा नहीं मिलता..। अज़ीज़ लखनवी की इस लाइन का रंग सनतकदा महोत्सव में देखने को मिला। कैसर बाग स्थित सफेद बारादरी में संगीत, गजल, किस्सागोई, मुशायरा, हैंडीक्रॉफ्ट, फैशन शो, बैतबाजी, कव्वाली, हेरिटेज एक्सपीरियंस सहित लखनवी खान-पान का अद्दभुत नजारा रहा। यहां लखनऊ के अलावा अन्य राज्यों कि विलुप्त होती कला, संस्कृति को भी दिखाया गया। चांदी की जूतियां, समुद्री मोती से बनी हैदराबाद की ज्वेलरी, चांदी की परत वाला पान लोगों को खूब पसंद आया। केलीग्राफी, मैग्नेटिक पेंटिंग, अफगानिस्तान कालीन, कानपुर का बोरिया बस्ता और पंजाब की जूतियों के स्टॉल पर भीड़ लगी रही। विशेष रूप से चिकनकारी, जरदोजी, कामदानी जैसे अवधी शिल्प की लोगों में जमकर खरीदारी की। इस आयोजन से शहर की विरासत को बचाने की कोशिश की गई..। दैनिक भास्कर टीम ने पूरे मेले का भ्रमण किया। जायका का लुत्फ उठा रहे लोगों से बातचीत की। पुराने जमाने में हेयर कटिंग…मिट्टी की दीवार में पोस्टर…इश्क-मोहब्बत वाली शायरी और संकरी गली की जिंदगी को महसूस किया। पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट…। लगा किस गली में आ गए, लौटे तो विरासत दिखी
दरअसल, सनतकदा मेले में पहुंचने वालों को पहले लगा किस गली में आ गए, लेकिन मेला घूम कर लौटे तो लखनऊ की विरासत की थीम का एहसास हुआ। सनतकदा की आयोजक माधवी कुकरेजा मेले में देखरेख कर रही थीं। वह हर व्यक्ति को शहर के बारे में बता रही थीं। हमारी भी उनसे मुलाकात हुई। इस दौरान उन्होंने कहा- इस मेले की तैयारी 6 महीने पहले शुरू होती है। शुरुआती दौर में बुजुर्ग और बड़ी उम्र के लोग शामिल होते थे। अब उल्टा हो गया, महोत्सव में युवा वर्ग ज्यादा आ रहे हैं। लखनऊ की गलियों को कर रही फील
मेला देखने के लिए शहर के लोगों की काफी भीड़ लगी। मेले में शामिल हुईं आयुषी सिंह कहती हैं- यहां पर आने वाले हर व्यक्ति के अंदर लखनऊ तहजीब नजर आ रही। पूरे इवेंट में पुराने लखनऊ की गलियों की खूबसूरती को दर्शाया गया है। लखनवी अंदाज में चांदी वाला पान
महोत्सव में लल्लन चौरसिया का पान काफी फेमस रहा। वह नजाकत के साथ लोगों को पान खिला रहे थे। दैनिक भास्कर ने जब लल्लन जी से बात की तो उन्होंने कहा- ये पारिवारिक पेसा है। 1956 से हमारे यहां का पान खास लखनवी अंदाज में लोगों को खिलाया जा रहा है। महोत्सव में अदब सिखाया जाता है
सनतकदा महोत्सव में पहुंची तैय्यबा कहती हैं- शहर के लोगों के साथ-साथ अलग-अलग जिले और राज्यों के लोग इस मेले में पहुंचते हैं। सभी को साल भर इसका इंतजार रहता है। यहां लखनऊ के तहजीब की झलक है। हर साल विभिन्न प्रकार के क्राफ्ट, खाना और कपड़े देखने को मिलते हैं। चांदी की जूतियों की डिमांड अमेरिका तक
मोहम्मद अशफाक चांदी की जूतियों का स्टॉल लगाए जो लोगों के लिए आकर्षण रही। वो कहते हैं कि इधर से गुजरने वाले भले न खरीदें लेकिन एक पल के लिए ठहर जाते हैं। चांदी की जूतियों की कीमत 17 हजार से 80 रुपए है। छत्तीसगढ़ का खास आयरन क्राफ्ट
हाथ से बने कालीन को अगर आग से बचा कर रखा जाए तो 100 साल तक चलता है। इसकी कीमत 30 हजार से लेकर 1 लाख है। छत्तीसगढ़ के अनंत राम आयरन क्राफ्ट का स्टॉल लगाते हैं। इनके स्टॉल में आयरन से बनी मूर्तियां, दीवार घड़ी, घर को सजाने का सामान लोगों को आकर्षित किया। वो कहते हैं मैं कक्षा 4 तक ही पढ़ाई किया हूं। ये हमारा पुश्तैनी काम है। सनतकदा में शुरु से आ रहे हैं। आयरन क्राफ्ट की कीमत 200 रुपए से लेकर 15 हजार तक है। अब तस्वीरों में देखें मेले की नजाकत….। ……………………………………
महाकुंभ ग्राउंड रिपोर्ट पढ़ें….
नागा संन्यासी 7 फरवरी से काशी जाएंगे:उदासीन अखाड़ों के संत जाने लगे, कुछ अखाड़े 12 तक रुकेंगे; बड़े साधु-संत कब तक जाएंगे महाकुंभ का आज 25वां दिन है। मेला अभी 20 दिन और चलेगा। हालांकि तीनों अमृत (शाही) स्नान पूरे हो चुके हैं। अखाड़े जाने की तैयारी करने लगे हैं। 13 में से 7 संन्यासी अखाड़ों के नागा साधु और संन्यासी यहां से काशी जाएंगे। अखाड़े 7 फरवरी से जाना शुरू कर देंगे। जबकि उदासीन के तीनों अखाड़ों के साधुओं ने जाना शुरू भी कर दिया है। बैरागी के 3 अखाड़े भी एक-दो दिन में जाने लगेंगे। कुछ संत 12 फरवरी, माघी पूर्णिमा स्नान तक रुक सकते हैं। पुरी के शंकराचार्य जा चुके हैं। जानिए कौन अखाड़ा कब जाएगा, बड़े संत कब तक जाएंगे…

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