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एसिड पीने से जला अमाशय, 90 मिनट चला ऑपरेशन:पत्नी से झगड़े के बाद पीया था टॉयलेट क्लीनर, 90 दिनों तक बिना खाए रहा जिंदा

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पत्नी से झगड़े के बाद जिसने 3 महीने पहले टॉयलेट साफ करने वाला एसिड पी लिया था, उसका पूर्णिया GMCH में गैस्ट्रोजेजुनोस्टॉमी ऑपरेशन हुआ। गुलाबबाग गुंडा चौक के रहने वाले मिथुन कुमार मेहता (28) को नई जिंदगी मिली है। एसिड से मिथुन का आमाशय जलकर पूरी तरह सिकुड़ गया था। इस वजह से उसने खाना छोड़ दिया था। मेडिसिन, इंसुलिन और प्रोटीन सप्लीमेंट लेकर मिथुन किसी तरह जिंदा था। प्राइवेट हॉस्पिटल में 2.50 लाख रुपए लग रहे थे, उसमें भी सेफ्टी की गारंटी नहीं दी जा रही थी। परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी कि वे इतना महंगा इलाज करा सके। इसके बाद GMCH के डॉक्टरों ने हाई रिस्क पर ऑपरेशन को चैलेंज के रूप में लिया। डेढ़ घंटे तक डॉक्टरों की टीम ने सफल ऑपरेशन किया। फिलहाल 10 दिन तक मिथुन को नर्स न्यूट्रीशन देंगी, फिर खाना दिया जाएगा। जिलाधिकारी ने डॉक्टरों को दी बधाई पूर्णिया के डीएम कुंदन कुमार ने डॉक्टरों की प्रशंसा की है। जिला प्रशासन के ऑफिशियल फेसबुक पेज से सफल ऑपरेशन की जानकारी दी गई है। साथ ही ऑपरेशन करने वाले सर्जन डॉक्टर तारकेश्वर कुमार, डॉक्टर विकास कुमार और उनकी टीम के सहयोगी प्रमोद कुमार और अर्चिता पटेल को बधाई दी है। लुधियाना से रेफर कर दिया गया था मिथुन के भाई रोहित ने कहा कि मेरे पिता ट्रक ड्राइवर हैं। बड़े भाई मिथुन लुधियाना में मजदूरी करते हैं। उनके साथ वहां उनकी पत्नी भी रहती थी। एसिड पीने के बाद उन्हें लुधियाना के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी स्थिति नाजुक देकर डॉक्टरों ने भाई को रेफर कर दिया था। भाई को हमलोग लेकर पूर्णिया चले आए। GMCH में एडमिट कराया। एक सप्ताह इलाज कराने के बाद भाई को घर ले आए। जिसके बाद फिर से तबीयत बिगड़ गई। रिश्तेदारों और निजी अस्पतालों ने पटना ले जाने की सलाह दी। डॉक्टरों ने 2.50 लाख तक का खर्च बताया। इसके बाद मैं GMCH के सर्जन डॉक्टर तारकेश्वर से मिला और उनसे मदद मांगी। भाई को GMCH में एडमिट कराया गया। खाना अमाशय में नहीं जा पा रहा था ऑपरेशन करने वाले सर्जन डॉ. तारकेश्वर कुमार और डॉ. विकास कुमार ने कहा कि एसिड पीने से मरीज का आमाशय जलकर पूरी तरह सिकुड़ गया था। इस वजह से मरीज ने 3 महीने से खाना-पीना छोड़ रखा था। खाना आमाशय से आगे जा ही नहीं पाता था और उसे उल्टी हो जाती थी। मरीज की हालत बिगड़ती जा रही थी। इस बीच मरीज कई बार कई दूसरे अस्पतालों एडमिट हुआ। मरीज के भाई के संपर्क करने के बाद सर्जरी विभाग में एंडोस्कोपी कर बीमारी का पता लगाया गया। इससे पहले इस तरह की जांच की सुविधा प्राइवेट अस्पताल में ही उपलब्ध थी। मरीजों को काफी पैसा खर्च करना पड़ता था। ऐसे कमजोर मरीज की सर्जरी काफी जटिल होती है। बेहोशी के बाद मरीज का होश में आना बेहद मुश्किल होता है। मरीज अभी पहले से बेहतर है सर्जन डॉ. तारकेश्वर कुमार, डॉ. विकास कुमार, सहयोगी प्रमोद कुमार और अर्चिता पटेल की टीम ने ऑपरेशन किया। इस सर्जरी में छोटी आंत के कुछ भाग को काटकर आमाशय के साथ जोड़ा जाता है, जिससे कि खाना सीधे आमाशय से छोटी आंत में जा सके। ऑपरेशन को गैस्ट्रोजेजुनोस्टॉमी कहते हैं। मरीज अभी पहले से बेहतर है।

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