बक्सर के ब्रह्मपुर धाम में महाशिवरात्रि पर लगने वाले विश्वप्रसिद्ध फाल्गुनी मेले की रौनक बढ़ने लगी है। मेले में घोड़ों के व्यापारी पहुंचने लगे हैं। राजस्थान और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से सैकड़ों व्यापारी अपने घोड़ों के साथ मेला क्षेत्र में डेरा जमा चुके हैं। मेला मुगल काल से चला आ रहा है। सोनपुर के बाद ब्रह्मपुर का पशु मेला एशिया में दूसरे स्थान पर है। मेले में घोड़ों की दौड़ प्रतियोगिता होती है। इसी दौड़ के प्रदर्शन के आधार पर घोड़ों की कीमत तय की जाती है। व्यापारियों की संख्या में होगी बढ़ोतरी 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन यह ऐतिहासिक मेला अपने चरम पर होगा। जानकारों का कहना है कि अगले दो-तीन दिनों में व्यापारियों की संख्या तीन गुना तक बढ़ जाएगी। शौकिया घोड़ा मालिक अभी तक नहीं पहुंचे हैं। हालांकि, उनके लिए हाई स्कूल के मैदान में टेंट लगाने का काम शुरू हो गया है। इस साल भी मेले की नीलामी नहीं हो सकी है। नगर पंचायत को राजस्व वसूली और व्यापारियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी दी गई है। मेले की ख्याति बिहार के अलावा कई राज्यों में फैली हुई है। दूर-दूर से आते हैं लोग ब्रह्मपुर में लगने वाले इस मेले में घोड़ों की खूबसूरती देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मेले में कई राज्यों से घोड़े के साथ बिहार के कोने-कोने से घोड़े के शौकीन लोग, यहां तक कि बड़ी-बड़ी हस्तियां पहुंचती हैं। घोड़ों के साथ-साथ मवेशियों के साज-ओ-सामान के व्यापारी भी अपना डेरा डालते हैं और गाढ़ी कमाई करते है। इस मेले में घोड़ों की रेस होती है। रेस के आधार पर घोड़ों के दाम कई लाख रुपए तक मिलते हैं। घोड़ों के अलावा अलग-अलग प्रकार की गाय की नस्लें, भैंस और जरूरत के कई सामान की बिक्री होती थी।
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